शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

पवन मुक्तासन (Pawanmuktasana Yoga

पवन मुक्तासन से शरीर की दूषित वायु मुक्त हो जाती है। इसी कारण इसे पवन मुक्तासन कहते हैं। मुख्‍यत: यह आसन पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों में से है, लेकिन इसे बैठकर भी किया जाता है।

विधि : यह पीठ के बल लेटकर किया जाने वाला आसन है। पहले शवासन की स्थिति में लेट जाएँ। फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटा लें। अब हाथों को कमर से सटाएँ। फिर घुटनों को मोड़कर पंजों को भूमि पर टिकाएँ। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों सटे हुए घुटनों को छाती पर रखें। हाथों की कैंची बनाकर घुटनों को पकड़ें।

फिर श्वास बाहर निकालते हुए सिर को भूमि से ऊपर उठाते हुए ठोड़ी को घुटनों से मिलाएँ। घुटनों को हाथों की कैंची बनी हथेलियों से छाती की ओर सुविधानुसार दबाएँ।

करीब 10 से 30 सेकंड तक श्वास को बाहर रोकते हुए इस स्थिति में रहकर पुन: वापसी के लिए पहले सिर को भूमि पर रखें। फिर हाथों की कैंची खोलते हुए हाथों को भूमि पर रखें, तत्पश्चात पैरों को भूमि पर रखते हुए पुन: शवासन की स्थिति में लौट आएँ। इसे 2-4 बार करें।

इसी आसन को पहले एक पैर से किया जाता है, उसी तरह दूसरे पैर से। अंत में दोनों पैरों से एक साथ इस अभ्यास को किया जाता है। यह एक चक्र पूरा हुआ। इस प्रकार 3 से 4 चक्र कर सकते हैं, लेकिन अधिकतर दोनों पैरों से ही इस अभ्यास को करते हैं।


WDसावधा‍नी : यदि कमर या पेट में अधिक दर्द हो तो यह आसन न करें। सामान्य दर्द हो तो सुविधानुसार सिर उठाकर घुटने से नासिका न लगाएँ। केवल पैरों को दबाकर छाती से स्पर्श करें।

लाभ : यह आसन उदरगत वायु विकार के लिए बहुत ही उत्तम है। स्त्रीरोग अल्पार्त्तव, कष्टार्त्तव एवं गर्भाशय सम्बन्धी रोगों के लिए भी लाभप्रद है। अम्लपित्त, हृदयरोग, गठिया एवं कटि पीड़ा में भी इसे हितकारी बताया गया है। खासकर पेट की बढ़ी हुई चर्बी को यह आसन कम करता है। स्लिपडिस्क, साइटिका एवं कमर दर्द में पर्याप्त लाभ मिलता है।

ब्रह्म मुद्रा (Brahma Mudra Yoga |

ब्रह्मा के चार मुख थे, और हम इस आसन में अपनी गर्दन को चारों तरफ से ले जाते है। अत: इसे ब्रह्मा मुद्रा आसन कहा जाता है, लेकिन इसे ब्रह्म मुद्रा आसन के नाम से जाना जाता है, जबकि ब्रह्म नाम वेदों में ईश्‍वर के लिए प्रयुक्त हुआ है।

विधि : जिस आसन में सुख का अनुभव हो वैसा आसन चुनकर (पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन) कमर तथा गर्दन को सीधा रखते हुए धीरे-धीरे दायीं तरफ ले जाते है। कुछ सेकंड दायीं ओर रुकते है, उसके बाद गर्दन को धीरे-धीरे बायीं ओर ले जाते है। कुछ सेकंड तक बायीं ओर रुककर फिर दायीं ओर ले जाते है, फिर वापस आने के बाद गर्दन को ऊपर की ओर ले जाते हैं, उसके बाद नीचे की तरफ ले जाते हैं। इस तरह यह एक चक्र पूरा हुआ। अपनी सुविधानुसार इसे चार से पाँच चक्रों में कर सकते है।


WD WD


सावधानियाँ : ब्रह्म मुद्रा का अभ्यास करते समय यह ध्यान रखना चाहिए क‍ि मेरूदंड पूर्ण रूप से सीधी हो। जिस गति से हम गर्दन को दायीं या बायीं ओर ले जाते हैं उसी गति से धीरे-धीरे वापस आएँ तथा ठोडी को कंधे की ओर दबाएँ।

जिन्हें सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस या थाइराइड की समस्या है वे ठोडी को ऊपर की ओर दबाएँ। गर्दन को नीचे की ओर ले जाते समय कंधे न झुकाएँ। कमर, गर्दन और कंधे सीधे रखें। गर्दन या गले में कोई गंभीर रोग हो तो योग चिकित्सक की सलाह से ही यह आसन करें।

लाभ : जिन लोगों को सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस, थाइराइड ग्लांट्स की शिकायत है उनके लिए यह आसन लाभदायक है। इससे गर्दन की माँसपेशियाँ लचीली तथा मजबूत होती हैं। आध्यात्मिक ‍दृष्टि से भी यह आसन लाभदायक है।